ए जी, लाली पलंग जवांदानी तकिया

ए जी, लाली पलंग जवांदानी तकिया
by महेंदर मिसिर
301463ए जी, लाली पलंग जवांदानी तकियामहेंदर मिसिर

ए जी, लाली पलंग जवांदानी तकिया।
करवा फेरीं ना बलमुजी हमारी ओरिया।
ए जी, आमवाँ महुअवा के झूमे डढ़िया।
तनी ताकीं ना बलमुजी हमारी ओरिया।
आमवाँ मोजरि गइलें महुआ कोंचियाई गइलें
ए जी, रसवा से भरली सगरी डढ़िया। तानी।
कोइली के बोली सुनी मन बउराई गइलें।
ए जी, ना अइलें हमरो बलमु रसिया। तानी।
महुआ बीनन गइनीं ओही महुआ बगिया।
ए जी, रहिया जे छेंकेला देवर पपिया। तनी।
कइसे के फेरीं हो तोहारी ओरिया।
तोहरा हारवा के मीनावाँ गरेला छतिया।
कहत महेन्दर हो मिलन के रतिया।
बिहने जइबऽ कालकातवा फाटेला छतिया।


This work is now in the public domain because it originates from India and its term of copyright has expired. According to The Indian Copyright Act, 1957, all documents enter the public domain after sixty years counted from the beginning of the following calendar year (ie. as of 2024, prior to 1 January 1964) after the death of the author.