जेंवहीं बइठेलें राम चारो भइया से

जेंवहीं बइठेलें राम चारो भइया से
by महेंदर मिसिर
301327जेंवहीं बइठेलें राम चारो भइया सेमहेंदर मिसिर

जेंवहीं बइठेलें राम चारो भइया से सखी सभे पारेली गारी हो लाल।
सोने के थारी में जेवना परोसिले जेवन लागे राजा के कुँवरवा हो लाल।
हँसी-हँसी पूछेली सारी से सरहज के राउर बाप महतारी हो लाल।
रउरा त हई राम जी घर के निकलुआ से मुनि संगे फिरे धेनुधारी हो लाल।
का करे जाएब राम जी अवध नगरिया से फूहरी तोहारी महतारी हो लाल।
लाख-लाख गारी तोहे देहब सँवरि से हमनी के छोड़ी जिन जइहऽ हो लाल।
जो तुहूँ जइब राम जी अपनी नगरिया से हमनी के संगे लेले जइहऽ हो लाल।
मइयो के गारी तोहरा बहिनीके गारी से टोलवा परोसियों के गारी हो लाल।
विश्वामित्र मुनी दाढ़ी डोलावेलें इनहूँ के दीहों आजु गारी हो लाल।
गाधी सुअन हउएँ बाले के तारसी त उनका केकर परी गाली हो लाल।
निरखे महेन्दर मोहे सभके परानवाँ से भरि लेहु भर अंकवारी हो लाल।


This work is now in the public domain because it originates from India and its term of copyright has expired. According to The Indian Copyright Act, 1957, all documents enter the public domain after sixty years counted from the beginning of the following calendar year (ie. as of 2024, prior to 1 January 1964) after the death of the author.