बदरा क्यों गरजे घनघोर सजनवाँ अइलें नाही मोर
बदरा क्यों गरजे घनघोर सजनवाँ अइलें नाही मोर।
कोयल कुहुके ऐ सखी, करे पपीहरा शोर।
झींगुर की झनकार है, बन में बोले मोर।
दम-दम दमकन लगे विजुरिया जियरा डरपन लागे मोर।
रैन अंधेरी होत है, गरजत है घनघोर।
बूँद पड़त अँगना सखी तरसत नैना मोर।
हरदम चाह लगी मिलने की अब तो चढ़ी जवानी जोर।
द्विज महेन्दर कइसे रहूँ करूँ कवन तदबीर।
कर काँपे लेखनी डिगे बहे नयन से नीर।
हरदम जपों नाम के माला मिल जा मोहन राज किशोर
This work is now in the public domain because it originates from India and its term of copyright has expired. According to The Indian Copyright Act, 1957, all documents enter the public domain after sixty years counted from the beginning of the following calendar year (ie. as of 2024, prior to 1 January 1964) after the death of the author. |