सुमरु सुमरु मन! शंकर समय भयंकर जानि

सुमरु सुमरु मन! शंकर समय भयंकर जानि
by चन्दा झा
301174सुमरु सुमरु मन! शंकर समय भयंकर जानिचन्दा झा

सुमरु सुमरु मन! शंकर समय भयंकर जानि।
ककर हृदय नहि कलुषित शासन कलि नृप पानि॥
केवल शिव करुणाकर सेवयित नहि जन हानि॥
भक्ति कल्पलति जानह परम परशमनि खानि॥
कतहु विषयमे न लागह त्यागह अनुचित मानि।
सुखसौँ अन्त विलसबह ‘चन्द्र’ चूड़ रजधानि॥


This work was published before January 1, 1929, and is in the public domain worldwide because the author died at least 100 years ago.