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नानासहेबनल पत्रओ की वह बौछार कि धीरे धीऱे लखनऊके शासक नानासाह्बके साथ कुछ सहमत हो गय । पूरत्रयोके राजा ,मानसिहको भी बात जच गयी । सैनिकौ ने अपना सगथन खडा करने का उदोग किया,जिसे लखनऊके शासकोने सहायता दी। अयोध्यआके खगास गहण तक किसी से उतर नही मिलता था;किनतु उसके बाद हर एककी आखै खुल गयी और उसने नानासाहब से सबध जोडना जारी किया। फिर कातसओ का मामला बना,जनता बिगड उथ। फिर क्या था? नानासाहब पत्रक्का सैलाव बड आया!
इस पकार,सवातययुद का गुस पचार चालू था। विशत:दिलीके दीवाने-ई-खासमे तिका वीज अचछी तरह जड पकड रहा था। अगेजो ने दिललीके बादह्शाह की सत्सनत ही नही छीन ली थी,वरच बाबरके वक्षकी'बादशाह'उपाधीको भी रद करनेका निक्षय अभी अभी किया था। ऐसी दुद्शामे दिललीके बादशाह तथा उसकी अत्यत पिय,चतुर एव हड वेगम जीनत मइलने पका निक्षय किया,कि गतवैभबको फिरसे पास करने का यह आखिरी मौका हाथ से न जाने दिया जाय। मरनाही है तौ दिल्लीके बादशाह तथा उसकी बेगमकी शानको शॉभा देनेवाले मौतको गले लगायगे,यह भी पण उन्होने उसी समय कर लिया। इसी समय अगेजो महीनो,नही सचमुच बरसोसे,देशभरमे अपने पडयत्रका जाल ये चुन रहे थे। एक दरबारसे दूसरे दरत्रारको,विशाल भारतके एक छोसे दूसरे छोर तक नानासाह्बके दूत गुस रपसे शायद गूद लिखा हुआ सदेसा और निमत्रण लेकर ,मित्र जाति तथा धमके नरेशॉके पास पहुच गये थे । हॉ,मराथॉसे उन्हे अत्यधिक आशा थी विदोहके पकट होनेके पहले देशभरमे फैली जालसाजीमे नानासाहबका पूरा हाथ था इस चारेमे मेरे मनमे रच भी सदेह नही है। देशके मित्र मित्र विभागोमे मित्र मित्र गवाहोके बयानोके मेलसे नानासाहबकी जालसाजीकी बात तकके क्षॅत्रसे आ जाती है। के क्र्त्र इडियन म्यूटीनी खड २ पृ २४-२५ इसी दूतने नानाके मित्र मित्र दरबारोके
नाम मेजे पत्रैकी बडी लबी तालिका दी हुई है।
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