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दोनों सखी । हे सखी शकुंतला हम कमल के पत्तों से वयार करते हैं । सो तेरे शरीर को लगती है या नहीं ।।

  शकुंतला । सखी तुम क्यों मेरे लिए दुःख सहती हो ।।

दुपय है इसकी तोह यह दशा हो रही है । क्या कारण इस ज्वर का है । धूप लगी है या जैसा मैं समझा हूँ । इस समय मेरे मन में कैसे कैसे संदेह उठते हैं । प्यारी के ह्रदय में उसीर का लेप लगा है और हाथों में कमलनाल का कंगणा इतना ढीला हो गया है । परन्तु इस दुर्बलता पर भी शरीर कैसा रमणीय है । रतिपति और यहपति, इन दोनों की खोज सामान है परन्तु ग्रीष्म ऋतु के भानु का संताप तरुणा स्त्रियों को इतना नहीं सताता है ।।

  प्रियंवदा, हे छनसूया, तू ने भी देखा था या नहीं जब शकुंतला की दृष्टि उस राजर्षि पर पड़ी तब कैसा ठंगी सी हो गयी थी । कही वही रोग तोह ईसे नहीं है ।। 
  छनसूया, मेरे मन में भी यही समस्या है । चाहे जो हो, इससे तोह पूछना चाहिए । हे सखी शकुंतला, मैं यह पूछती हूँ तेरी यह दशा क्यों हुई है ।। 
  शकु, सहेली तुम ही बताओ तुम इसका कारण क्या समझती हो ।।
  सखि हम तेरे ह्रदय की तोह क्या जाने । परन्तु जैसा दशा लगन मनुष्यो की कहानियों में सुनी है वैसे तेरी दिखाई देती है । तू ही कह दे तुझे क्या रोग है क्योंकि जब तक मलम न जाने वैद्य, औषधि भी नहीं कर सकता है ।।
  दृश्य मेरे मन में भी यही थी ।।