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हेराय गेलै- अमर के बाबू देह तेजी देलें छेलै। तखनी हमरों की रं दशा होय गेलों छेलै, है बात सालो बाद देवदासी ओकरा बतैलें छेलै नै देहों के सुध, नै कपड़ा के; बच्चा-बुतरू तें हमरों हालत देखिये के मुँह सुखैले रहै आकि कान रहै। हौ वक्ती जेठे दा तें आपनों घरों के चिंता छोड़ी, दीदी के भेजी-भेजी, हमरों खोज - खबर लेते रहै | दीदी कें भेजै की, हुनी तें दिन-रात हमरे लुग बैठलो रहै। जेठों दा के भेजलों दबाय दीदिये के पिलाना छेलै, खिलानौ छेलै ते हुनकै। तंत्र मंत्र से लै किसिम-किसिम के दवाय-दारू। देवदासी बतैनें छेलै - है कहाँ कि की नै जेठें तोरा लें करले छेलौं, तबें तोहें रास्ता पर ऐलो छेलौ।”

“मतर है कोय बतैलों बात ते नै छैकै, ऊ तें हमरों आँखी सें देखलों छेकै। लोगें तें यहा कहै छेलै - ई तें केकरो नजरी के बाण लगलों छेकौं, माय की ठीक हुऍ पारथौं, कोय कुछ, ते कोय कुछ। माय के सौंसे देह केन्हों चित्ती से भरी गेलों छेलै ! हम्में लाल दा से कहीं सुनी के माय के दौलतपुर लै आनले छेलियै। जेठें देखले छेलै, बड़ी देर तांय, आरो फेनु अमर के बोलाय के कहले छेलै - कनेली पंडित के हमरों नाम कहियें, यहू कहियै कि एक बड़ों रं कंतरी, मोटों दलों के, बड़का बाबू मांगले छौं, कल्हे भेजी दियौ! दोसरे दिन एकदम भोरे भोर माय बहा कंतरी पर अमर के सहारा ले चुकूमुकू बैठी रहलो छेलै। जेठें मने-मन मंतर पढ़ना शुरू करले छेलै आरो एकरों साथे कंतरी रसें - रसे आपनों जग्घा पर घूमें लागलों छेलै, एकदम होने; जेना कंतरी मट्टी में गढ़लों घूमतें रहें। आपनों जग्घा पर कंतरी ओत्ते देर घूमी के रुकी गेलों छेलै, ज देर पाँच बेरी जोरों-जोरों से साँस लै आरो छोड़े में लागै छै। चार दिन तांय हेने होते रहलों छेलै। पाँचवों दिन कंतरी घूमी के चार टुकड़ा में बँटी गेलों छेलै आरो दोसरों दिन के बिहानिये से माय के शरीर केला के गब्भा नांखी चिकनों हुऍ लागलों छेलै। ई तें हमरों आँखी के देखों छेकै | माय मरै से बची गेलों छेलै, तें जेठे के पुण्य प्रतापों से आरो देवदासी कहै छै - जो हम्मू बची गेलियै, तें जेठे के कारण। भला वैं कथी लें कुछ लगाय- भिड़ाय के कहते?”

देवदासी के बात याद ऐहैं ओकरा लागलै कि कड़कड़िया धूप पर दूर-दूर तांय मेघ बिछी गेलों रहें, पानी ते नै, मतर बरफे रं शीतल हवा चौवाय बनी के बड़े लागलों रहें। कि तखनिये ओकरा खयाल ऐलै- की रं