नै बुझलें छेलै, नै तें हुनियो मामला के खोज करतियै। ऊ दिनों से अमरजीत के श्लोक के कोय असर दोनों भाय पर नै हुऐ, भले अमर श्लोक पढ़ते-पढ़ते दोनों भाय के बगले सें गुजरी जाय।
आय व सिद्धि के, नाटक में, राम के पाठ दै के बात सोचलों जाय रहलों छेलै। सिद्धि के राम के पाठ दै में एक फायदा तें सबके ई बुझाय रहल छेलै कि ओकरों मुँहो- देहों पर कोय मुर्दाशंख लगाय के जरूरत नै छेलै, नै कोय रंग-रोगन चढ़ाय के जरूरत। ओकरों देहे के रंगे छेलै राम हेनों। मतुर सबसे बड़ों दिक्कत ई छेलै कि कोय बात के आगू ऊ बिना छिनरी सांय लगैनें बोलै नै पारै। मंचों पर राम जबें परशुराम के छिनरी सांय कहते, तें परशुरामो की आपनों कुल्हाड़ी रोकें पारते? वहू में जबें अजनसिया परशुराम के पाठ करी रहलों है, अच्छो बातों पर मार करै वास्ते सद्धोखिन तैयार। नै, सिद्धि के राम के पाठ नै देलों जावें सकै छै। बहुत मंथन बादे ई तय होलै कि साधुनाथ से ही राम के अभिनय करैलो जाय। यहू तय होलै कि सिद्धि विश्वामित्र बनतै आरो जेन्हैं छिनरी सांय बोलै पर होतै, तखनिये दूसरों पात्र आपनों गोड़ों के बुढ़वा औंगुरी से ओकरों कोय अंगुरी दबाय देतै, जैसे सिद्धि के आपनों गलती बुझाय जाय। आरो बहा होलै। नाटक के रिहर्सल शुरू भै गेलो छेलै, नद्दी कछारी पर खड़ा झबरलों बॉर गाछी नीचें। अमरजीत से कुछुवो बात छिपलों नै छेलै। छिपलों की रहतियै, सिद्धि आरो अजनसिया तें आपनों संवाद एतें जोरों-जोरों से बोलै कि तहखाना में बैठलों आदमियों के सुनाय पड़ें, आरो ठोठों फाड़ी के ई रं संवाद बोलै के पीछू एक्के मकसद रहै - अमरजीत के ई बतैबों कि देख, तोरों बिनाहौ नाटक हुऍ पारें। मुर्गा नै बोलतै, ते विहान नै होते की ? आरो हिन्ने आफ्नो खटिया पर पड़लों पड़लों अमरजीत फदकर्ते रहै, भला राम हेन्है के बोलै छै, कर्ते रुक्खों, कर्ते उस्सट वचन। केला गाछी में टिकोला झूलते रहें, आरो अजनसिया के ठोठों देखों, जेना बरसाती में सौढ़ा गरजते रहें। कौआ के भण्डारी बनैतै, ते पत्ता पर गूए-गू नै होते, तें होते की? आरो अमरजीत भीतरे-भीतर ई सोची के कि नाटक की रं होयवाला छै, रही-रही खिलखिलावें लागै छेलै | जे रहें, रिहर्सल पूरा होय गेलों छेलै। सौंसे गाँव नाटक देखै लेली