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से पुछले छेलै, "कल्लर, एक बात पूछियौ ?”

“पूछ, की पूछे ले चाहै हैं?” कल्लरो लगले बोलले छैलै ।

“अच्छा कल्लर, देहों से भले तोहें कल्लर रहें, दिमागों से तें बरियों छेवे करैं; ओक पर तोहें गनौरी गुरुजी रॉ फेटलों चटिया रहलों हैं; की तोहें है बतायें पारें कि पुरानों जमाना में, राजा-रजवाड़ा के गुनगान करैवाला के कै किसिम होय छेलै, आरो ऊ सिनी कॉन-कॉन नामों से जानलों जाय छेलै?”

एक दाफी तें कल्लर के लागलै कि इखनी है पूछे के की मतलब, तहियो वैं माधो मिसिर के सवाल के लगले जवाब देलकै, "है कोन बड़का सवाल छेकै, आपनों आश्रयदाता रॉ उच्चा कुलों में जन्मैवाला प्रशंसक सूत कहावै छेलै, जेनाकि राजा से वंश रों प्रशंसा करैवाला मागध कहावै, प्रसंग के अनुकूल सुदर-सुंदर पंक्तिसिनी रची के राजा के प्रशंसा करैवाला वंदीजन जानलों जाय, ते राजा के प्रशंसा करी हुनका भोरिया जगावैवाला वैतालिक नाम से जानलों जाय; जेनाकि हर प्रमुख कार्य, यहाँ तांय कि युद्धो में साथ रही के राजा रॉ शौर्य के वर्णन करैवाला चारण कहावै । आखरी में भांट आवै छै - आपनों जजमानों के प्रशंसा करी कुछ पावैवाला प्रशंसक भांट कहावै छै।"

“एकदम ठीक बोलल्हैं, कल्लर”, माधो आपनों बायां हथेली सें दायां हथेली पर घूसा मारतें कहलकै, “आबे ई बताव कि जे किसिम से तोहें अमरजीत के कुल खनदानो के प्रशंसा करते रहे हैं, तें तोहें ई सब के कोन कोटि में आवै छै— बंदी, की वैतालिक, की चारण, की भांट ? "

अबकी है सवाल सुन कल्लर एकदम से तिलमिलाय गेलों छेलै, मतर बोललै कुछुवे नै, जेनाकि आरो सिनी दोस्तो ई बातों पर एकदम चुप्पी लगाय गेलो छेलै । माधो ई चुप्पी के मानी समझी गेलों छेलै, तें बात के थोड़ों बदलै के कोशिश में बोललै, "बुरा ते नै मानी लेलें, कल्लर ? ठिक्के कहै छियौ, हम्में तें तोरों ज्ञान सबके सामना में राखै के ख़याले से तोरा है पूछी ले छेलियौ । आखरी बात ते खाली हँसी-मजाके वास्तें कही देलें छेलियौ । बुरा नै मानियें ।"

मतर ई कहलौ के बादो माहौल नरमैलों कहाँ छेलै ! कल्लर आपना कें रोकें नै पारलें छेलै, तँ कहिये बैठलै, 'मसानी के पूजा करते-करते दिमागो तें मसान होय गेलोँ छौ, बीहा के मंत्र नै नी सुहैतै ।" मतर माधो के चेहरा पर