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कोय दवाय देतियौ ।”

वैद्यबाबा के मालूम छै कि दवाय तें लेतै, दाम दै के नाम पर महीनो भरी झुलैतै, से हुनी कहलकै, "विसुनदेव, दवाय लेवा, तें एक टाका लागी जैतौं, हम्मे तोरा दवाय बनाय के तरीके बताय दै छियौं, एक्को आना नै खरच होथौं, आरो दूसरो के इलाज करें पारों ।”

'ईतें आरो बढ़िया, बाबा ।"

"तें सुनों, लटजीरा रॉ पात कॅ टिकिया लिऐं बनाय करूवो तेल में भूनी दें बँधै कि खुजली जाय। या नै ते फेरू एक आरो तरीका छै, अरहर दाल जलाय के दही में दिहें मिलाय पकलों खाज पर लेप देथौ रोग भगाय |

"ठीक छै, वैद्यबाबा । आजे ई सब करै छियै ।" ई कही के विसुनदेव जेन्हें दायां हाथों के बल्लों पर उठै के कोशिश करलकै, कि आशुतोष बाबू बोललै, “बैठों विसुनदेव, बैठों । हड़बड़ाय के की जरूरत है। जबें दवाय के किताबे बताय देलियौं तें जिनगी भर बनैतें नी रहियौ । ऐलों छो, तें थोड़े थिराय ला नी । जरा गाँवों के हाल-चाल सुनाय लें।"

आरो विसुनदेव जबें दीवारी से टिकी ठेहुना मोड़ी के बैठी रहलै, तें आशु बाबूं पुछलकै, "की विसुनदेव, तोरों तें अमरजीत कन खूब आना-जाना होय छौं। आयकल अमरा के माय के कोय खोज-खबर ठीक से नै मिली रहलो छै, तोरा तें मालूम होथौं । हेनों की बात छै, जे तोरा नै मालूम हुवें ।"

“से तें ठिक्के कहलौ, वैद्य दादा मतर हौ घटना के बाद हमरौ कुछ ढेर पता नै लागलों छै कि नैकी बोदी कहाँ छै ।”

“आंय, कोन घटना ?” आशु बाबू कुर्सी पर होने बैठलों-बैठलों विसुनदेव दिस थोड़ों आरो टा झुकी गेलों छेलै ।

“तें, तोहें नै जानै छौ की? अरे बाप ।”