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घरों में केकरौ नै जानकारी देलकै, शायत ई सोची के कि आरी कोय हुऍ- नै हुऍ प्राती के माय जरूरे परेशान होय जैतै ।

प्राती आशु बाबू के एकलौती बेटी छेकै; जेकरों शादी आशु बाबू किशोरेवस्था में करी देलें छेलै, ई सोची, कि माथों के भार जतें जल्दी हल्कों हुए, ओत्ते अच्छा; एक बेटा छै, वहू कौन बेटी के भार से कम छै, आरो ई भारते हुनका जिनगिये भर ढोना छै, जेना हुऍ । यहा सोची के आशु बाबू ने प्राती के धान-पान दै के खोचों भरी छे ।

बड़को बेटा घरों में रहवो कहाँ करै छै। दिन भर बाहरे-बाहर । हुनी जाय के देखलें तें नै छै, मतर लोगों से सुनले छै, आरी जेकरा से सुनले छै, हौ झूठो केना हुऍ पारें । बेटा सुलेमान दरजी के यहाँ दरजीगिरी सीखी रहलों छै । पहिलो दाफी सुन छेले, तें बात जी हदमदावैवाला लागलों छेलै, मतुर जल्दिये आपना के संभाली लेलें छेलै, मनेमन ई कही कॅ-जबे बीमाँये मसूद्दी मियां से बीड़ी बनाय लें सीखें पारें, तें जों टुन्नू सुलेमान से दरजीगिरी सीखी रहलो छै, तें कोन अपजसवाला बात ! टुन्नू तें आखिर लड़के छेकै । लड़का जात कहीं छुतावै छै की, छूत छात तें जनानी वास्तें होय छै?

"सुनै छाँ, गाड़ी आवै के बेरा होय चललौं, गोड्डा नै जैवौ की ?” प्राती के माय के आवाज ऐंगना सें ऐलै, तें आशु बाबू भी औसरा से ऐंगना दिस बढ़ी गेलै । ऐंगना के देहरी पर बैठते हुएँ कहलकै, “नै, गोड्डा नै जैवै । पता नै अमरजीत के बात सोची के मॉन केन्हों नी लागै छै, यहू तें पता नै, कि बोमाँ कहाँ छै, महीना भरी से ऊपरे होय रहलो छै ।”

प्राती माय गेहूम डोकवों छोड़ी के आशु बाबू के नगीच आवी गेलै । मचिया खींचलकै आरो वहीं पर आपनों देह के भार राखी देलकै । कुछ आराम बुझेले, तें कहना शुरू करलकै, “आखिर की करतै, बेचारी दियोर के नुकसान होहैं, जे दुख ऊ भोगी रहलो छै, केकरो नजरी से छुपलों छै की ! हमरौ सिनी की करें पारौं। कहै छै, टुन्नू के बाबा महाशय जी के मुंशी छेलात । बस आपने वास्तें मुंशी। आपने जिनगी भर सुख-मौज भोगी के चल्लो गेलात । पाँच बीघा जमीन बनाय के भी राखी लेतियात, तें है दिन देखै नै मिलतियै । आबे मुँह खोललै से की, हुनी जे करलकात-से करलकात, आबे हमरासिनी के जे भोगना छै, भोगै छी । है भोगवे नी छेकै