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“के टाडूढीवाली ?"

“हमरी कनियैन टाड्ढिये के नी छेकै, आबें तोहें भुलावें लागलों, बड़का दा । खैर छोड़ों, ते हम्में कही रहलों छेलियौं कि खिरनी धनुकायन ने टाड्ढीवाली के बतैलें छै, कि फूल के बीहो ओकरों बड़के मामा ठीक करले होलें छै उपरामा के कोय लड़का सें । "

"सकीचन के बात सुनी के आशु बाबूं आपनों दोनों गोड़ कुर्सी से उतारी, टेबुल के नीचे लगलों तखती पर राखी लेलकै, आरो सकीचन दिस कुछ झुकते हुए बोललै, “आरो की बोललो छै?"

“बाकी तें आरो नै बतावें पारभौं, बड़का दा । हों एतना जरूरे जानै छियै कि लड़का कोनो कैथ संस्कारों के नै छै, सेहे पता लगावै लें सत्ती बोदी भागलपुर पहुँची गेलों छै । फूलमती के साथ ले जाय के मतलब बूझे पारै छौ । हुऍ पारें, देखा-सुनियो पक्की करल्है आयें ।" { सकीचन के बात सुनी के आशु बाबू एक बार कुर्सी पर एकदम सीधा होय गेलै, जेना हुनको दिमाग में बात एकदम ठीक-ठीक बैठी गेलो रहें। आशु बाबू के ऊ स्थिति देखी सकीचनो नै रुकलों छेलै आरो आपनों बात में आखरी बात ठोकर्ते हुए कहलकै, “आरो जों ई बात सहिये छेकै, ते है बूझों कि सामना के बारीवाला जमीन अबकी बिकन्है छै । कुशवाहा काका के नजर ऊ जमीनों पर लागले होलों छै । यही बूझों कि जखनी बोदी जे माँगतै, जेना माँगतै, जॉन वक्ती माँगतै, ऊ सब कुशवाहा काका के मंजूर खैर, चलै छियौं, बड़का दा ।"

" से हेनों की हड़बड़ी छौं ?" आशु बाबू चाहै छेलै कि सकीचन कुछ देर लेली आरो बैठें, शायत आरो कुछ हुनी जानै लें चाहै छेलै, मतुर तखनिये कमर सीधा करतें सकीचनें कहलकै, “छै नी हड़बड़ी, बड़का दा, ऊ पछियारी टोला में केशो दां लाल दा से जे गाय खरीदले छेलै नी, तें बेचे वक्तीं यही कही के बेचलें छेलै कि गाय एकदम देशला छेकै, पिठाली रं दूध करथौं आरो दोनों शाम मिलाय के दस सेर से कम नै । तें बड़ी हुलासों से केशी दां गाय खरीदी तें लेलकै, मतुर निकली गेलै जरसी। आबे जे गाय के टाँगे में दम नै हुऍ, ओकरों दूधों में की दम होतै, बड़का दा । पहिले तें लाल दा से केशो दा के खूब कहा-सुनी होलै, केन्हों के बात थमैलै, तें बूधी दा से केशोदा के होय गेलै, बस यहा सोचों कि लाठी नै चललै नै तें उटका पैची में कोयों