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कि हुनकों बेटा फस्ट करलें है, तें केन्हों गदगदाय जैतियै .... देखैले हुनी नै रहलै... नै, हेनों कैन्हें हम्में बोली रहलो छियै, हुनी जीत्तों छै, जीत्ते रहतै, भले हमरों मने में रही के । हुनी सब गमी रहलो छै, सब देखी रहलों छै ।”

अनुकंपा के लागलै, सत्ती कांही कानी नै भरें; से वैं कहलकै, “अमर के पास करला पर तोरों भाय मिठाय लानले छौं, उपरामै से किनी कें। सब बच्चां तें आपनों - आपनों हिस्सा लैक निगलियो चुकलकै । बची गेलों छी हमरा दोनो; ननद भौजाय । चलो हमरो दोनों पूजी लौं।” ई कही के ऊ हाँसी पड़लों छेलै, तें सत्तियों के ठोरों पर मुस्कान उभरी ऐलों छेलै । “बोदी,” ऊ बिना वहाँ से हिल्ले हुल्ले कहले छेलै, "बीस रोज बीती रहलो छै; गाँव जाना जरूरी है। बलजीत अकेले छै, हेना के ओकरों बड़का बू के रहते, चिंताहै कथी के छै । तहियो बच्चा तें बच्चे होय छै । माय बिना बस टुअरे बूझों। से आ हमें रुकें नै पारौं । सब बात मनो लायक होय्ये गेलै । फूल के बीही पक्की होय गेलै, अमर पास करिये गेलै, आबें घोर के हवांक छोड़वों ठीक नै । कल भोरे भोर मनारवाली टरैन पकड़ी लेयै, तें भगवान के उगते उगते पंजवारा मोड़ पहुँची जेवै ।”

“है की बोलै छाँ, ननद ! कल वृहस्पति छेकै आरो वृहस्पति के शेष में दक्खिन दिस यात्रा करवा एकदम ठीक नै । जानाहै छौ तें सोमवार के निकली जय्यौ । एकदम नै रोकवौं । दादाहौ जानथौं, ते नै जावै ले देथौं ।”

“ नै बोदी, जाय लें पड़वे करते । एते दिन यहाँ रुकी गेलियै, यही बहुत छै, दादां कही देलकै कि अमर के रिजल्ट सुनी ले, तबें जय्यँ, तें रुकी गेलियै, आबें यहाँ रुकै के कोय मतलबे नै छै । परसुवे से मॉन करी रहलो छै, घोर लौटी जाय के।"

“मतर वृहस्पति के शेषों में जैवौ ?

“की होतै बोदी ! हम्मे आपनों सामान आर्धी रात के पहिले घरों से बाहर द्वारी पर राखी ऐवै, तबें तें जतरा के दोष कटी जैतै नी। आरो दोष सुहागिन, अयभाती वास्तें होय छै; विधवा वास्तें की !”

अभी सत्ती आरो कुछ बोलतियै कि अनुकंपा ने ओकरों मुँहों पर आपनों दायां हाथ राखी देलें छेलै, ई कहते हुए, “सब शुभ- शुभ होय रहलों हेनों अशुभ कैन्हें बोलै छो । आबें जबे रुकहै लें नै चाहै छों, तें कोय बात नै; चलों सबटा सामान समेटी ला । हम्मू मदद करी दै छियौं ।”