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जमीन सुखनिया नदी के किनारी में छै, आरो हर दाफी फसल दही जाय छै । से ऊ जमीन बेची के बारीवाला जमीन खरीदी लैले चाहै छेलै, नै ते पूर्णमासी के बौंसी छोड़ी के यहाँकरों खेत खरीदै के की जरूरत छेलै, मतुर यहुमें बोमाँ के लागलै कि हम्में कोय चाल चली रहलों छियै । यहू सोचें पारें कि जब हम्में खुद सक्षम छी, ते हम्मे ई परिवारों के केक से कोय मदद कैन्हें लौं । पूर्णमासी मिसिर के पक्षों में हम्में छियै, है बात तें बोमाँओ के मालूमे छेलै, हमरा घुमाय-फिराय के कहियो देलें छेलै, कि हुनी चुतरानन मिसिर के वचन देलें छै, तें आबें है सोची के कि वचन में भांगटों नै पड़ें, बोमाँ ने चतुरानन मिसिर के दौलतपुर बोलैले रहे आरो वाही से मिसिर के साथ बांका कचहरी चललों गेलै ।”

“मानी लें, ई बात सच्चे रहें, ई बात होय्ये गेलों रहें, ते पैमें हमरा सिनी के की सोचना छै, जमीन हुनकों, कीमत हुनी लेतै, हमरा सिनी के की लेना-देना ? " प्राती - मांय गिलास के देहरी से सटाय के नीचे राखले हुए कहले छेलै ।

" लेना-देना तें नहिये छै । मतर यही सोचौ, पूर्णमासी ते पक्का ओतनौ टाका दै रहलों छेलै, जत्ते दहेजों में दै ले लागतियै, आरो चतुरानन दू सौ कम्म दै रहलों छेलै, बाकी टाका वास्तें तें आयें हाथ केकरो -नै-कंकरी सामना फैलावे लॅ नी लागतै । हम्मी नै, अमरजीत के बड़को मामा, बोमाँ के समझे छेलै कि जे हम्में कही रहलों छियै, ठिक्के कही रहलो छियै, मतुर बोमाँ मानैवाली छेलै । आपनों लाल बोदी के माध्यम से लालदा के कहवाय देलकै, हम्मे चतुरानन मिसिर के वचन देलें छियै । प्राती माय, आबें तोहीं सोचों, हेनों वचन के की, जे हुनके लें कसाय बनी जाय !"

“कुठुवे तें सोची के राखले होतै नी । इखनी से कथी लें एतना चिंतित होवों । हों, बोमाँ के एतना जरूरे सोचना चाही कि बीहा होला के बाद जनानी के नया जन्म होय छै, आपनो ससुरारी परिवारों के साथ। आरो जे संबंध मरण तांय जुड़लों रहै छै । ससुराल परिवारों के सुख-दुख ओकरों सुख-दुख । नैहर ते खाली कहै के जिनगी तें नहिये नी करें पारें, नैहरा में । कटवो करतें, ते भौजाय, भाय के नौड़िये बनी के । यही से बीहा के बाद, लौटी के ससुराल में बास करी के, आपनों भाग्य के बनाना चाही । आय दियोर जीत्तों होतियै, ते एत्ते ई सब नै होतियै ।” प्राती माय आपनों लोराय