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पारों । इनाराहै छेकै, पाँच टोला के पचास किसिम के लोग | सबके जेबी सें लैके इनारा के भीतरी तांय खोजलों गेलै, चिरियारी चॉर खिलाय के नौबत आवी गेलै, आरो बटेसरां खाय से इनकार करी देलकै, तें मतलबे छेलै कि माला वहीं चोरैलें छै । के नै कहले होते कि जो माला नै लेलें छै, तें चौर चिबाय से मुकरै हैं केन्हें ? मतर बटेसर खाय लें तैयार नै । बस की छेलै, मुंशी जी के गोस्सा जानवे करै छौ, बहू में जमींदार बाबू के मुंशी । दियै नी लागलै, ओकरा | आखिर कानतें कानतें सबके बोललकै, “केना खैतियै, चौर; हमरा दाँत छै कि चबाबौं । मसूड़ा में चौर गड़तियै नै ?” आरी हा करी के मुँह खोली दे छेलै । हाय रे बाप, एक्को ठो दाँत नै छेलै । बेलुन रं मुँहों में खाली हवा भरलों छेलै । सबके हँसी आवी गेलै, मुंशियो जी कें, मतुर मार ते खैय्ये लेलकै नी बटेसरां - भले ओकरा छोड़ी देलों गेलै । यही लें कहै छियौ, धनुकायन चाची, कि चिरियारी-बिरियारीवाला खेल ठीक नै - वहू में विरिज काका के गोस्सा ते जगजाहिर छै । हेना के तें हुनी गोस्सावै नै छै, आरो जों हुनका गोस्सा ऐलो, ते जम्मो थरथरावै । यही से देखै छौ नी, खाली हुनिये गाँव भरी से अलग-थलग नै रहै छै, गाँवो भरी होने । गीतियै परहेज करै छै, आरो चिरियारी चौरवाला बात हुनिये कहले छै ।” अजनसियां जानी के विरिज बाबू के नाम कहले छेलै कि हुनका से कोय कुछ पूछे के साहस करो नै पारें ।

शायत ई कहानी सुनी के खिरनी धनुकैनो खूब हँसतियै, मतुर ओकरों ध्यान तें काँही आरो ठियां चललों गेलो छेलै । वैं मने मन सोचलें छेलै, “हमरा की लेना-देना है कि सत्ती बोदी के बात छिपावौं आरी फेनु बोदीं हमरा केकरो कहै से थोड़े मना करलें छै, कि नहिये कहियौं । जो लौटला पर पूछतै, तें कही देवै, कि तोहें है कहाँ कहले छेलौ है बात केकरो से नै कहना छै, फेनु बिरनी काकी के तें हम्में कहिये चुकलों छियै, आबें बड़की बोदी से कहिये दै छियै, तें की होय जाय छै, आरो है बात छिपैलो से ठीक नै, कहीं कोय आरो बात होय जाय, ते बदनामी हमरे माथों पर ऐतै । "

“की सोचें लागलौ चाची? जे भी कहों, चाची, ई रूपसावाली, बड़ों दा के नाकी दम करी देलें छै । आरो हुनका कुछ बोलथै नै बनै छै, छोटका भाय के विधवा कनियैन लें बोलवी करतै तें की? नै निगलहैं बनै छै, नै उगलहैं। हमें तें कहै छियै बड़ों दा के, पंचायत बिठाय के झंझटे पार करी