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बात पूछल्हैं.....

“कुछ तें दिमाग लड़ैय्ये लें नी लागे छै, बड़का दा । कही देलियै, कि विरिज काका चोरियारी चौर खिलायवाला छै, पंचायत बुलाय के | की मरद आरो की जनानी, जेकरा - जेकरा पर शंका छै, ओकरै- ओकरै खिलैतै । बस ई सुनहैं, सब उगले लें तैयारे नी होय गेलै । कहलकै चोरियारी चौं र खिलाय के की जरूरत है, जाय के बड़की बोदी के सब हम्मी कही दै छियै ।”

"ते ई बात छेलै, बेरा डूबै में दू बाँस बचले होते कि हमें घोर लौटलों छेलियै, आरो यहाँ बड़की बोदी से मालूम होलौ कि खिरनी धनुकायन सब बात बोली के अभिये-अभी घोर गेलों छै । ई सब बात सुनी के प्राती - माय तें बड़ी दुखित छै । बड़ी समझला-बुझेला पर शांत होलों छै । “मतर बड़की बोदी के शांत होलै सें की होय छै, बड़का दा । जे आग सुलगी गेलों छै नी, ऊ तें, भूसाहै तरों के आगिन बूझों, हों। हमरा नै लागै छौं, ई बुझेवाला, कत्तो पानी ढारी, सब ऊपरे- ऊपर टघरी जैथौं ।” अजनसियां आपनों दायां हथेली के हवा में एक दिसों से दूसरों दिस ससारतें कह छेलै । “तोरों बात नै बुझलियौं ।”

“बात तें साफे छै, बड़ों दा, कैन्हें नी बूझे पारी रहलो छै। हों, यै वास्तें नै बूझें पारी रहलों छौं कि धनुकायन चाची तें ओतनै टा बतैलें होथौं, जतना टा जानै छै, बेसी ते नहिये नी ।" अजनसिया नें फेनु दायां हाथों से बायां हाथों के एकेक अंगुरी के पुटकैते हुए बोललो छेलै ।

“बाकी बात की ?”

“अही बड़ों दा, यही तें बताय वास्तें हम्में आवी गेलियै, नै ते ई बेरा जानवे करै छों, हम्में कम्मे निकलै छियै” पालथी मारी के बैठते हुए अजनसियां कहना शुरू करले छेलै, "हमरा कंकड़िया के दोसरी कनियैनी सें नी मालूम होलै । घोर लौटी रहलों छेलियै, तें लखपुरा के कालीथानों में मिली गेलै; हमरा देखलकै, ते बोले लागले, 'रुक-रुको दियोर' आरो हम्में रुकलियै, तें नगीच आवी बोललै-“है पूछे छियौं, जब सत्ती बोदीं आपनों जमीन बेचियै देलकै, आरो तीरों दोस्त, कहै के मतलब हमरों मालिक सें, है तीन सौ टाका पैंचो कथी लें मांगी रहला छेलै, वहू ई कही के कि फसल पकहें तोरों रिन उतारी देवौं, या तें टाका लै लियों, आकि टाका के बदला