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के सुनैलकै कि वैं घरे छोड़ी देलकै । रास्ता में जे भी मिललै, ओकरा यही कहतें गेलै कि आपने पेट भरना छै नी, ऊ तें कोय गाँव में केकरो दुआरी पर रही के होय जैते । नौड़पने करना छै तें केकरौ कन जग्घों मिली जैतै । खाना बनाय के हुनर छै, ते मुँहों में दू दाना चल्ले जैतै, आरो ठिक्के में वैं गाँव छोड़ी देलकै, लौटलै नै । लोगें तें यही बुझलें छेलै कि दू तीन दिन बाद घोर लौटी ऐतै, लेकिन शबरी - माय फेनु घॉर नै ऐली। बुढ़ापा रॉ देह, जानें केकरों दुआरी पर केना खटतें होती ।" कही के देवदासी एकदम सें गेलों छेलै आरो सत्तियो । बस चलते रहलै, चुपचाप । यहाँ तक कि सत्ती के घॉर के नगीच आवी गेलों छेलै । I चुप होय देवदासी रुकलै आरो आपनों अंचरा दोनों हाथों के बीचों में लैकें सत्ती के सामना गर्दन झुकाय लेलें छेलै ते सत्तियों आपनों हाथ आशीर्वाद के के मुद्रा में ऊपर उठाय देले छेलै ।

(१८)

सत्ती के गाँव लौटवों भर छेलै, कि टोला - टोला में अनुमान रों कथा- खिस्सा रंगे लागलै । जते लोग, ओहै बात, "चिंता फिकिर से केन्हों करियाय गेलों छेलै बेचारी । बोदी, आबे निष्फिकर होलै, तें मनो हलफलैलों लागै छै। कोय मिलै छै, तें केन्हो हुलासों से मिलै छै, चाहे कोय रहें कि । यहा बोदी, आठ-दस महीना से केन्हों झाड़-झंखाड़ होय रहलो छेलै ।”

“से ते ठिक्के कहै हैं, वासमती; भगवाने सबभे के दिन घुरावै छै । तोहें आठ-दस महीना के बात करे हैं, हम्में तें सत्ती बोदी के जिनगी में वहा दिनों से ढेव मारतें देखलें छियै, जॉन दिन गुरुदादा के ठठरी उठलों छेलै; गोदी में चार-चार ठो बुतरु । अन्तरे की होते चारो भाय-बहिन में ? बेसी-से-बेसी दू सालों के अन्तर । यही नी । मतरकि हियाव देखों बोदी के । बच्चा-बुतरु के दुख देखलकै, ते यहू भूली गेलै कि हुनको माथा पर नै आबें सिन्दूर छै, नै हाथों में चूड़ी। खुरपी- कुदाल उठाय लेलकै आरो आपनों बारी से लैकें