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“अरे यैमें हाँसै के तें होनों बात नै छै।” सिद्धि कहलकै, तें माधो बोललै, "हाँसे के की बात छै? जाने हैं, हौ छौड़ासिनी तकिया बनाय लेली जे लकड़ी बिछी बिछी आनले छेलै, ऊ सारा परकों बचलों-खुचलों जरलों लकड़ी छेलै। बिहानै पता लगथै, ते सब नद्दी के धारा में बतख नाँखी मूड़ी गोती-गोती के नहाय रहलों छेलै। मत पूछें, ऊ दिरिश।” आरो ई कथा पर माधो साथै सिद्धि, मंगलिया, चेथरी आरो सकीचन खूब ठठाय पड़लों छेलै।

'वहीं सें नी, जे खाना बाराती वास्ते बनलो छेलै, ऊ टोला-पड़ोसों के लोग थरिया भरी-भरी लै गेलों छेलै, सत्ती बोदी के कर्ते दुख तें होलों छेलै।"

“मतुर बोदी से बेसी तें हुनको लालदा दुखित होय के गेलों छै।”

“से बात तें तोहें ठिक्के कही रहलों हैं।"

"लड़की विदाय के ठीक दोसरों दिन के बात छेकै। सब के आचरज होय रहलों छेलै कि अमर के पंचामृत बाबू आखिर अभी तांय रुकल होलो कैन्हें छै? जों सरसतियां है बात विंदेसर के नै बतैतियै कि छोटकी बोदी अमर के कमल मिसिर के यहां छिपाय ऐलो छै, तें बातो खुलतियै की ?”

“एकरों भनक कुछ हमरौ लागलों छेलै, बात की छेकै?" मंगलिया गोड़ पसारतें बोललै।

“बात ई छेलै कि पंचामृत बाबूं अमर के बीहा के बात चलाय दे छेलै, ओकरों दहेजों से जे रकम मिलतियै वही से फूलमती के बीहा में होलों खर्च आरो दहेज के बकाया टाका के चुकाय के बात छेलै। हुनी यहू नै चाहै छेलै कि वैद्य दादा के जमीन में बंटवारा हुऍ, जे पुस्तैनी, खेतिहर जमीन छेकै, हौ, वैद्य दादाहै के पास रहें, मतुर सत्ती बोदी है सब एक्को बात लें तैयारे कहाँ छेलै। बोदी कुछ बोललै ते नै, बस अमर के कमल मिसिर कन दू दिनों वास्तें बिठाय ऐलै। पंचामृत बाबू के बात समझ में देर नै लागलों छेलै आरो हुनी हौ दिन बिना खैले-पीले दुआर छोड़ी देलकै, एकदम भोरे भोर। जानैवालां तें जानिये लेलकै। जानतियै केना नै, आखिर अमर के दू दिन कमल पाठक के यहाँ नुकाय के रहै के राज कै दिन छुपतियै ?” अब तांय पालथी मारी बैठल माधो मिसिर ने गोड़ सीधा करतें कहले छेलै।