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ओकरों जे नतीजा निकलतै, ओक लोगें याद राखतै।” अजनसियां आपनों मूड़ी तनी- तनी दायां- बायां हिलेते हुए कहले छेलै।

“आबें हमरा सिनी के ये बातों से की लेना-देना छै, आरो जों कुछ मतलबी छै, तें सत्ती बोदी सें, हिनकों लाल दा आकि हरा दा से की लेना-देना। देखलैं, हमरा सिनी के मौन देखिये के बोदी ऐंगना में मछली परोसै से मनाहियो नै करलकै, की रं टूटी पड़लों छेलै खवैय्या - बीस सेर के एक रोहू आरो खवैयो बीसे। परोसै भर के देर छेलै आरो जेना मछली- अंडा के पंचोल कीड़ा चट करी जाय, होन्है झोर सहित कुटिया - सब मिली के चट करी ऐलों छेलियै। अरे, बाप रे बाप, पहिलो दाफी तोरों घटोत्कच नाँखी गलफरों खुलतें-बंद होतें देखले छेलियौ।” कही के सिद्धि हँसलै, तें मंगलियां लगले कहलकै, “आरो तोरों मुँह तें सीपी रं सिटलों छेल्हौ, की? आँख बंद करी मुँहों में हेनों डालले जाय रहलो छेल्है, जेना हवनकुंड में आपनों गणेशी, मंतर पढ़ी-पढ़ी हविश डालै छै। मछली आरो सिद्धी; जेना विलाय आगूं सुंघठी।"

अबकी सिद्धी कुछु नै बोलें पारले छेलै, बस एतन्है टा हौले-हौले बोललो छेलै, “घोर जो। मौगी, खटिया बिछाय के बैठली होतौ" आरो नद्दी दिस सिधयैले कि मंगलियां ओकरा रोकर्ते कहलकै, "एतना तें बतैतें जो, सिद्धि कि है मछलीवाला सहयोग केकरों दिसों से छेलै?"

“अरे, केकरों दिसों होते, वैद्य दा छोड़ी के आरी के है इंतजाम करलें होते। तोहें की समझे छै, विरिज नारायण बाबां करलें होते। अरे, ठनका से खाली जंगल-खलिहान जरें पारें, ओकरा से चूल्हों नै जरै छै।” ओकरों उत्तर सुनी के माधी तक के हंसी आवी गेलों छेलै।

(२१)

ई बाँही के कोय फुसरी नै छेलै, कि अंगा से छिपाय जैतियै, ई तें