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“हों, यहू हुऍ पारें। हुवै के तें ढेरे बात हुऍ पारें। जानवे करै छें, हुनी फूल के ससुराल गेला के बाद एक दिन यहाँ रुकी गेलों छेलै, आरो कथी ले-आबे ई बात गाँव से छुपलों नै छै। आखिर सोच्हैं, वैद्य काकां, मास्टर साहब के एत्ते बड़ाय कैन्हें करी रहलो छेलै।”

हेनों चौबाय तब तांय उठतै रहतै, जब तांय ऐंगना में अमरजीत के बारात विदाय के गीत नै गूंजे लागलै,

घर से बाहर भेलै सोहाना रे बने

बने, सिर केरों मोरिया, अजब रे, बने

अम्मां परेखै तोरों मुख रे, बने

बने, राम उड़हुल दुनू ठोर हे बने

घर से बाहर भेलै सोहाना रे बने

बने, अंगहे के जोड़वा सोहाना रे बने

गाँव के बच्चा-बुतरु आरो छौड़ी सिनी सब्भे दुआरी दिस दौड़ी पड़लै। मोर पिन्हलें, धोती में दुल्हा बनलों अमरजीत सच्चे में कर्ते सुन्दर लागी रहलों छेलै। गीत पर गीत आरी जेन्है ऐभाती सिनी के बीचों से शबरी काकी के गीत उठलै, बाबा साजै बरियात रे बने बने, मामा लुटावै बंगाला पान रे बने कि सत्ती के आँख हठासिये डबडबाय उठलै। ओकरा ख्याल ऐलै, आय जेठे बेटा के बीहा में नै तें ओकरों बाबुए छै नै ते ओकरों बड़का मामा, दोनों में से कोय नै। मतुर वैं लोर के आँखी के ऊपर आवें नै देलें छेलै। अँचरा से आँखी के कोर पोछी के सवासिन सिनी के पीछू होय गेलों छेलै।

गाड़ी के भीतर हौ छ्वारिक सिनी आरी एकाध अधवैसू बैठलो छेलै, जे साफ-सुथरा धोती, कमीज, फुलपैंटों में छेलै, बाकी बचलों तें गाड़ी के छत्ते पर सट्टी- सुट्टी के बैठी रहलों छेलै, जेकरों धराने से पता लागी रहलों छेलै कि ओकरा बीहा से एतन्है भर मतलब रहें कि भोजों में जमी के ठाँसी लेना छै। हेनों लोगों में पनरों से बीस बरस के छवारिक बेसी शामिल छेलै, जेकरों या ते कन्धा पर आकि माथा पर एक गमछी ते जरूरे छेलै आरो