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लगभग सब्भे टा हाफपैंटे में, जे गाड़ी के कुछ दूर गेला पर हेने लागी रहलों छेलै; जेना मोटर गाड़ी के ऊपर कटहल से भरलों, गोछियैलों बोरिया सिनी धरलों रहें।

गाड़ी भोपूं बजैतें आँखी से ओझल होय गेलों छेलै।

सत्ती तब तांय डेढ़िया पर मुरुत नाँखी ठाढ़ी रहलो छेलै, जब तांय आरो सवासिन साथै बारात के अरियातैवालाही घुरी नै ऐलो छेलै। जाय वक्ती तें पचीसो ऐभातिन से कम नै होतै, मतुर घर लौटते लौटते बस तीने टा बची रहलों छेलै, एक ते सत्ती के बड़की बोदी, ओकरी जेठानी, आरो हबीब के बाबू मसूद्दी चाचा, जे बरात साथें गाड़ी तक ते गेलो छेलै, पर गाड़ी खुलहैं, दुआर तांय आवी के घॉर लौटी गेलो छेलै। बाकी ते रास्ता है से आपनों आपनों घोर दिस ससरी गेलों छेलै।

शायत अनुकंपा कुछ पूछवे करतियै कि सकीचन के माय पूछी बैठलकै, "मर, अमर के बड़का बाबू के बराती में नै देखलियै हुनी पहिले कोय आरो गाड़ी से निकली गेलो छेलै की?'

तें, सत्ती ओकरी दिस बिन देखलें कहले छेलै, "हुनको तबीअत खराब छै नी, यै लेली नै ऐलात। एक बीहा हेनो, सकीचन के माय, जे बिना बूढ़ों- पुरानों के बिना | फेनु पुरैत तें सार्थे गेले छै नी, आरी फेनु कोय साथ छै कि नै छै, हमरों भगवान तें साथ होवे करते।" कहते-कहते ओकरों आँख एकदम छलछलाय उठलै। वैं आँखी के संभारें नै पारलकै, जे अभी तांय लोरों के संभारी राखले छेलै।

अनुकंपा ओकरा लैक ऐंगनों से कोठरी आवी गेलै। साँझ उतरी ऐलों छेलै। गाँव-टोला में शांति फैले लागलों छेलै, जों गूंजी रहलों छेलै कांही कुछ, तें शबरी के कंठ, जे अभियो तांय मड़वा के नगीच बैठी के अकेले गीत गावी रहलो छेलै,

संझा बोलथीं माई हे

किनका घर जैवे हे

के लेतै संझा मनाई हे

दुलरैइते बाबू घर हम्मे हो जैवै

दुलरैती देवी लेतै संझा मनाय हे

जबें सत्तीं रतजग्गी लें कोय जनानी के रोकवे नै करलें छेलै, तें