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ve विलोचभी चौदहवीं पुतली

  • विलोचभी चौदहवीं पुतली ने *

कहा, ‘पहिले कथा सुन जो मैं कहती हूँ, पीछे सिंचाबन पर बैठ,” राजा ने सुनते ही पाँव खैच खिया, और सिंचाबन के नीचे आसन बिछा बैठ गया, तब पुतली बोली, कि ‘राजा ! सुन, एक दिन राजा बीरविक्रमाजीत ने अपने प्रधान को बुलाकर कहा, कि मैं चश करूंगा, जिस से पुन्य हो, और आगे को निस्वार होवे ६ दीवान ने सुनते ही देसर को गौता भेज, जहां तखक राजा प्रजा थे, उन्हें बुलाया * करनाटक, गुजरात, कशमीर, कनौज, निलंगाव, इन नगरों में भी गीता भेज जितने बिराह्मन थे उच्हें बुलाया, और सातों दोप में गौता भेजा, वहाँ के राजाओं को लखव किया, फिर एक बोर को पाताल के राजा के पास गौता भेज उसे बुलाया, और दूसरे बीर को खर्म को रवान: कर देवताओं को गौत भेज बुलाया, और एक विराद्मन को बुलाकर कहा कि तुम समुद्र् को खाकर हमारी दंडवत कही, और निवेदन करो, कि राजा ने यश आरंभ किया है, और आप को बजत बिनती कर बुलावा है; वृह विराह्मन दुर्त वहां से चला, और कितने एक दिनों में सागर के तीर जा पहुंचा, और वहां देखता का है, कि न कोई मनुष्य है, और न कोई वहां पशु, पक्षी है, केवख जल ही जल नज़र आता है: यह देख क्रािहुल अद्ने जो में चिंताकर कहने खमा, कि राजा का संदेसा मैं किसे कई, यहाँ तो कोई जीव दिखाई नहीं देता, और है तो केवख जल हो जल है. ऐसा विचार कर अपने मन में कुछ [[Category:Hindi]