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॥ अथ सिंहासन ,बत्तोषो लिख्यते ॥

          एक राजा भोज, उज्जैन नगरी का राजा, महाबली और बड़ा धनी, जसी, और धर्मात्मा था। जितने लोग उसके राज में बसे थे सब चैन करते थे। राजा राज, प्रजा सुखी, किसी को कोई दु:ख नहीं दे सकता था। यह न्याव उसके यहां था। कि बाघ, बकरी, एक घाट पर पानी पीते थे, और सब उसके आसरे से जीते। ईश्वर ने जब से उसे संसार में उतारा, सब बे सहारों का किया सहारा। और रूप उसका देख कर पून्यो के चंद्रमा को चका चौंधी आती। बड़ा चतुर, सुघड़ अति गुनी था ; अच्छी २ जितनी बातें सब उस में समाई थीं. भलाई उसकी देश २ में प्रसिदध थी। और नगरी उस की यह बस्ती थी कि चप्या रखने को ठौर नहीं मिलती थी * वुह भरा २ नगर, आनन्द बधाए घर २ नई २ भांति के अच्छे २ मंदिर बने हुए; चौपड़ का बाजार, तिम्र के बीच में नहर बहती हुई, दुरस्तः दूकानों में एक २ रदूकानदार, सुरीफ बल्वाज सौदागर, कारीगर, सुनार,लुहार,खादः कार, कसेरा, पटुआ,किनारी बाफ, कोफ्तगर, जिलाकार, आईनः साज अपने २ काम में सरगर्म था * जौहरी बाजार में जवाहिर से किश्तियां भरी हुई। मोती, मूंगा,