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कामोदी सातवीं पुतली

राजा बोला ऐ जोगी मति हीन! ऐसा जोग तूने कब कमाया, जो तू कुंडख मांगता है, बुह सन्यासी कहने लगा, महाराज! मै ने जोग तो कुछ नहीं साधा पर सुना था कि राजा बड़ा दानी है इस से मैं ने आप को जांचा, राजा ने हंस कर कुंडख उतार उस के हाथ दिया, आप खुश होता ऊआ, अपने घर में आया.” काम कंदला थे बातें सुना कर कहने लगी, "राजा! तुझ में भी इतनी कुदरत हो तो इस सिंहासन पर बैठ” * यह बात सुन राजा मन मलीन हो फिर गया. उस के दूसरे दिन राजा दिल में गुझ: खाता ऊआ फिर सिंहासन पर बैठने चाला, और पुरोहित से कहा, ‘इस बेर मैं पुतली के रोकने से न रुकूंगा, आज सिंहासन पर जरूर बैठूंगा,” जब राजा ने पांव उठा कर सिंहासन पर चाहा कि रक्खूं*

कामोदी सातवीं पुतली

पांव तले आन गिरी, राजा ने यह तौर देख दुखित हो, पांव खैच लिया, और उस पुतली से कहा, "तू किस कारन चरन में आन गिरी ?” तब उस ने कथा शुरूआ की, "हम जो हैं अबला सतयुग की हैं, राजा! तेरा अवतार कलियुग में. हम ने एक ही मर्द का मुंह देखा, और दूसरे का मुंह नजर से नहीं देखा, हम पहिले अपना माजरा कहती हैं, कि बिश्वकर्मी ने तो हमें जनम दिया और बाऊबल राजा के पास हम आकर रहीं, उन मे राजा