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कामोदी सातवीं पुतली

विक्रमाजीत को हमें दिया, वुह अपने घर ले आया, जब से हम उसे बिछड़ी हैं, तब से कभी सुख नहीं पाया. "जो उस राजा के बराबर होवे सो इस सिंहासन पर बैठे.” राजा बोला बिक्रम में वस्फ़ क्या थे? तू वे मुझ से बयान कर, तब वुह कहने लगी * "सुन राजा बिक्रम का अहवाल. एक दिन वुह अपने घर में दो पहर रात को सोता था, और तमाम शहर नींद में यह गाफिल था, जो किसी आदमी की आवाज न आती थी उत्तर दिया नदी के पार एक स्त्री झाढ़े मार के रो उठी; वुह आवाज राजा के कान पड़ी. राजा मन में चिंता करने लगा हमारे नगर में कोई दुखी आया है कि वुह अपने दुख से कूक मार २ रोरहा है. वह बात दिल में विचार ढाल, तलवार हाथ में ले उधर को चला, और नदी किनारे पहुंच कर बसन छोड लंगोटा मार, पैर कर पार हुआ. क्या देखता है, कि एक अति सुन्दर, जवान नारी खड़ी कूक रही है. उस के पास जाकर राजा ने पूछा, “पुरुष का तुझे वियोग है, या पुत्र का तुझे सोग है, या तुझे सौत का साल है? इतने दुखों में किस दुख से तू रोती है, जो कुछ तुझे व्यापा है सो मुझे कह.” तब वुह कहने लगी ‘सुन राजा! हमारा बालम चोरी करता था, शहर के कोतवाल ने उसे पकड़ कर सूली दिया है, और मैं उसकी महब्बत से कुकू खाना खिलाने को आई हूं, चाहती हूं उसे भोजन करवाऊं, पर सूली ऊंची है, और मेरा हाथ उसके मुंह तलक नहीं पहुंचता, इस दुख से मैं रोती हूं, और जितना जतन करती हूं.” पहुंचने नहीं पाती नृपति ने कहा, ‘यह तो थोड़ी सी बात है, इस के वास्ते तू